नई दिल्ली. केंद्र सरकार जल्द ही भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। इस दिशा में कानूनी अड़चनें दूर करने को लेकर केंद्रीय विधि मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से विचार-विमर्श शुरू किया है।
विधि मंत्री वीरप्पा मोइली की मानें तो भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों से निपटने में कुछ कानूनी प्रावधान आड़े आ रहे हैं। इन्हें बदलने के लिए वे प्रधानमंत्री से चर्चा कर रहे हैं। मोइली ने रविवार को कहा, ‘यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अनुच्छेद ३११ के प्रावधान भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में बाधक हैं।
इस अनुच्छेद की समीक्षा करने की जरूरत है।’ मोइली ने कहा कि भ्रष्टाचार उन्मूलन संबंधी संथानम कमेटी ने भी अपनी टिप्पणी में कहा है कि अदालतों ने इस अनुच्छेद की जैसी व्याख्या की है, उससे भ्रष्ट अधिकारियों से निपटने में कठिनाई आ रही है। यह अनुच्छेद सरकारी कर्मचारियों को कुछ अधिकार और संरक्षण प्रदान करता है। कानून लागू करने वाली एजेंसियां इसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधक मानती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने हाल में कहा था कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति लेने में प्रक्रियागत देरी होती है। इस परिप्रेक्ष्य में विधि मंत्री का ताजा बयान अहम माना जा रहा है। मोइली ने इस अनुच्छेद में संशोधन की वकालत करते हुए कहा कि इसके बावजूद सरकारी अधिकारियों को अनेक संरक्षण प्राप्त रहेंगे।
आभार – दैनिक भाय्कर
केंद्रीय जांच ब्यूरो अपने ही भ्रष्ट कर्मचारियों को सजा दिलाने में विफल..
नयी दिल्ली । चिराग तले अंधेरा। देश में भ्रष्टाचार एवं अपराध पर लगाम लगाने और दोषियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अपने ही भ्रष्ट कर्मचारियों को सजा दिलाने में विफल रही है। पिछले 20 वर्ष के दौरान आपराधिक मामलों में आरोपित अपने कर्मचारियों में से पांच फीसद को भी वह सजा नहीं दिलवा पाई है। सीबीआई की इस विफलता का चिठ्ठा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से खुला है। पिछले 20 वर्ष के दौरान सीबीआई ने अपने कर्मचारियों में 46 आरोपी कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए।
इनमें से सीबीआई महज दो अधिकारियों को अंतिम कार्रवाई पूरी करने के बाद विभागीय दंड दे पायी है जबकि दो कर्मचारियों को अदालत के जरिये सजा हो पायी है। जिन दो अधिकारियों के खिलाफ दोषी पाये जाने पर विभागीय कार्रवाई की गई है उन पर अपने पद दुरूपयोग करते हुए लाभ अर्जित करने और रिश्वत लेने के आरोप थे।
ऐसा क्यों हो रहा है सीबीआई इस पर चुप रहना बेहतर समझती है परंतु सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि विभाग के कई अधिकारी मादक पदार्थो की तस्करी घूस लेने समेत विभिन्न आपराधिक मामलों में लिप्त पाये गये हैं। अदालती कार्रवाई में देरी तथा विभागीय आरोपपत्र सशक्त नहीं होने की वजह से इन्हें दंड नहीं मिल पाता है। सीबीआई के पूर्व निदेशक ने बताया कि ब्यूरो में अपने कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए विशेष प्रकोष्ठ बने हुए हैं और विभाग खुद ही अपने लोगों पर निगाह रखता है। किसी भी संदिग्ध गतिविधि के बारे में सीधे निदेशक को रिपोर्ट की जाती है।
आरटीआई के तहत सीबीआई के सहायक महानिरीक्षक से मिली जानकारी के अनुसार 46 आरोपी अधिकारियों में से 41 के खिलाफ जांच कार्य अभी जारी है जबकि इनमें से एक अधिकारी विजय आग्ले को अपने पद का दुरूपयोग कर रिश्वत लेने के आरोपों से बरी कर दिया गया है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सीबीआई से विभाग में अधिकारियों की आपराधिक मामले में सहभागिता और उन पर की गई कार्रवाई की स्थिति रपट के बारे में जानकारी मांगी गई थी। आरटीआई के तहत सीबीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले 20 वर्ष में 46 आरोपित अधिकारियों में से 22 पर अपने पद का दुरूपयोग करते हुए गैरकानूनी तरीके से लाभ अर्जित करने और रिश्वत लेने के आरोप हैं।
इसके अतिरिक्त पांच अधिकारियों पर आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोप हैं। इनके नाम हैं जगदीश तुकाराम पाटिल ब्रजेश चंद्र शर्मा आ॓ पी शर्मा एस एस अली तथा के मुरलीधर। इसके अलावा चार कर्मचारियों के खिलाफ ठगी और धोखाधड़ी के आरोप हैं। इनके नाम हैं अरविंद कुमार यादव सुरेश प्रसाद अबनेजर पिल्लै तथा पी के घोष।
इसमें आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि एक अधिकारी (लीलू राम) पर विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर पैसे लेने और मानव तस्करी के आरोप हैं। एक तरफ हाल के दिनों में जहां सांसदों कलाकरों और अपराधियों द्वारा मानव तस्करी की जांच सीबीआई कर रही है वहीं उसके एक अधिकारी के खिलाफ ऐसे संगीन आरोप हैं।
आरटीआई के तहत सीबीआई से प्राप्त जानकारी से यह बात उभर कर सामने आयी है कि उसके कुछ अधिकारियों के खिलाफ कुछ मामलों में आरोपियों को लाभ पहुंचाने जन्मतिथि में हेराफेरी करने और अपराधियों को बचाने के लिए गलत रिपोर्ट सौंपने के भी आरोप हैं।
सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने बताया कि सीबीआई के व्यवस्थित तरीके से कामकाज करने की राह में सरकार से भी सहयोग नहीं मिल पाता है। इसके कारण नौकरशाह और आरोपी अधिकारी खुले रूप से घूम रहे हैं।
उन्होंने बताया कि “किसी भी लोक सेवक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए धारा 197 के तहत सरकार से अनुमति जरूरी होती है”। इस तरह के दिशा निर्देशों से सीबीआई का कामकाज प्रभावित होता है। इसी के मद्देनजर संघीय जांच एजेंसी गठित करने का प्रस्ताव किया गया है। सिंह ने कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जांच एजेंसी में भ्रष्टाचार है।
आभार – इंडियन न्यूज सर्विस
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